Tuesday, May 7, 2019

व्यक्ति ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इसके कानूनी पहलू।

 हम सभी भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश मे रहते हैं जहाँ अलग अलग जात, धर्म ,विचारधारा इत्यादि के व्यक्ति  रहते हैं। हमारे देश मे व्यक्तियों को स्वतंत्र रूप से अपना चहुँमुखी विकास सुनिश्चित हो इसके लिए संविधान ने  अनुछेद 12 से 35 तक कई तरह के अधिकार प्रदत्त किये हैं( समता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार,शिक्षा व संस्कृति का अधिकार व संवैधानिक उपचारों का अधिकार)  । इन सभी अधिकारों में से महत्वपूर्ण एक अधिकार अनुच्छेद 19 (1) में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा है। इसका आशय है कि इस देश के प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भय व दबाव के अपनी बात कहने का व अपने विचारों को प्राकट्य करने का अधिकार होगा।नागरिक के इस अधिकार पर युक्तियुक्त निर्बंधन  अनुच्छेद 19 (2) के अनुसार किसी विद्यमान विधि द्वारा लगाया जा सकता है जब  भारत की प्रभुता व अखंडता, राज्य कि सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,, लोक व्यवस्था, शिस्टाचार , सदाचार के हितों में, न्यायालय के अवमान , मानहानि या अपराध उद्दीपन इत्यादि प्रभावित किया जारहा हो। इसके साथ ही उपरोक्त कारणों के मद्देनजर राज्य नई विधि बना सकती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में संसद सादस्यों को अनुच्छेद 105 एवं विधान मंडल के सादस्यों को अनुच्छेद 194 के तहत क्रमसः संसद व विधान मंडल की कार्यवाही के दौरान सादस्यों के वक्तव्यों पर किसी तरह के निर्बंधन से उन्मुक्ति प्रदान की गई है। इस संबंध में एक महवपूर्ण पी वी नरसिम्हा राव बनाम राज्य 1998 के वाद में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि  ही दशाओं में हो सकता है एक तब जब वह अनुच्छेद  19(2) निर्बंधन  अनुच्छेद 105(1) व अनुच्छेद 194(1)  पर प्रभावी नही है।
            लेकिन संसद सादस्यों का संसद के बाहर व विधानमंडल के सादस्यों का। ही विधानमंडल के बाहर दिया  हुआ कोई वक्तव्य जो अनुच्छेद 19(2) के अनुसार हो तो युक्ति युक्त कर्यवाही हो सकती है।  निम्नांकित दशाओं में नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्बंधन लगाया जा सकता है----:
1. रास्ट्र की एकता व अखंडता  की शर्त पर
2.राज्य की सुरक्षा व  लोक व्यवस्था की शर्त पर
3.कानून व्यवस्था सुचारू बनाने के लिए
4.अन्य राज्यो से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध में हस्तछेप पर
5.किसी को अपराध के हेतु उत्प्रेरित करने की शर्त
6.मानहानि की दशा में
7.नैतिकता की शर्तों पर
8.न्यायालय की अवमानना की दशा में
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए महत्वपूर्ण मामले---:
रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य, AIR 1950 के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लोक व्यवस्था के आधार पर निर्बंधन से इंकार कर दिया था क्योंकि यह 19(2) में शामिल नही था । इस प्रभवि को दूर करने हेतु प्रथम संविधान संशोधन 1951 के तहत लोक व्यवस्था शब्द जोड़ा गया।  राम मनोहर लोहिया, 1960 के बाद में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लोकव्यस्था  का आशय लोक शांति, सुरक्षा आदि से है।

स्टेट ऑफ बिहार बनाम शैलबाला 1952 के मामले में कहा गया कि किसी नागरिक का एशिया वक्तव्य जो बड़े पैमाने पर हिंसा व हत्या कराए तो यह राज्य की सुरक्षा का गंभीर मामला है।


इस प्रकार हम यह देखते है  कि संविधान ने नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो दी है लेकिन साथ ही इस पर युक्तियुक्त निर्बंधन भी लगाया गया है।  ये भी महत्वपूर्ण है कि आये दिन नागरिकों व नेताओं के  द्वारा इस निर्बंधन को दरकिनार करते हुए वक्तव्य दिए जाते हैं लेकिन कोई ठोस कर्यवाही नही हो पाती । चुनाव के समय मे ऐसे वक्तव्यों की होड़ सी लग जाती है जो कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी उचित नही है।

           जरूरत इस बात की है कि हर नागरिक स्वयम भी जवाबदेही ले कि वह कुछ भी ऐसा नही बोलेगा जो समाज या रास्ट्र के लिए खतरनाक हो।

व्यक्ति ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इसके कानूनी पहलू।

 हम सभी भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश मे रहते हैं जहाँ अलग अलग जात, धर्म ,विचारधारा इत्यादि के व्यक्ति  रहते हैं। हमारे देश मे व्यक्तियों क...